Apr 3, 2020

श्री रामाष्टकम्

श्री रामाष्टकम्


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम

भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम् ।
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम्   ॥ १ ॥

राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम  

जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकं ।

स्वभक्तभीतिभञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ २ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम

निजस्वरूपबोधकं कृपाकरं भवापहम् ।

समं शिवं निरञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ ३ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम

सहप्रपञ्चकल्पितं ह्यनामरूपवास्तवम् ।

निराकृतिं निरामयं भजे ह राममद्वयम् ॥ ४ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम

निष्प्रपञ्चनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयम् ।


चिदेकरूपसन्ततं भजे ह राममद्वयम्  ॥ ५ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम


भवाब्धिपोतरूपकं ह्यशेषदेहकल्पितम् ।

गुणाकरं कृपाकरं भजे ह राममद्वयम् ॥ ६ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 

महावाक्यबोधकैर्विराजमानवाक्पदैः ।

परं ब्रह्मसद्व्यापकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ७ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 

शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम् ।

विराजमानदेशिकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ८ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 


राम राम राम राम  राम राम राम राम  

राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 

राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 

रामाष्टकं पठति यस्सुखदं सुपुण्यं

व्यासेन भाषितमिदं शृणुते मनुष्यः

विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं

संप्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्  ॥ ९ ॥

इति श्रीव्यासविरचितं रामाष्टकं संपूर्णम्
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