Apr 16, 2020

अच्युतस्याष्टकं

अच्युतं केशवं रामनारायणं
कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् |
श्रीधरं माधवं गोपिका वल्लभं
जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे || 1 ||

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं
माधवं श्रीधरं राधिका राधितम् |
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं
देवकीनन्दनं नन्दजं सन्दधे || 2 ||

विष्णवे जिष्णवे शङ्कने चक्रिणे
रुक्मिणी राहिणे जानकी जानये |
वल्लवी वल्लभायार्चिता यात्मने
कंस विध्वंसिने वंशिने ते नमः || 3 ||

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण
श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे |
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज
द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक || 4 ||

राक्षस क्षोभितः सीतया शोभितो
दण्डकारण्यभू पुण्यताकारणः |
लक्ष्मणोनान्वितो वानरैः सेवितो
अगस्त्य सम्पूजितो राघवः पातु माम् || 5 ||

धेनुकारिष्टकाऽनिष्टिकृद्-द्वेषिहा
केशिहा कंसहृद्-वंशिकावादकः |
पूतनाकोपकः सूरजाखेलनो
बालहोपालकः पातु मां सर्वदा || 6 ||

बिद्युदुद्-योतवत्-प्रस्फुरद्-वाससं
प्रावृडम्-भोदवत्-प्रोल्लसद्-विग्रहम् |
वान्यया मालया शोभितोरः स्थलं
लोहिताङ्-घिद्वयं वारिजाक्षं भजे || 7 ||

कुञ्चितैः कुन्तलै भ्राजमानाननं
रत्नमौलिं लसत्-कुण्डलं गण्डयोः |
हारकेयूरकं कङ्कण प्रोज्ज्वलं
किङ्किणी मञ्जुलं श्यामलं तं भजे || 8 ||

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं
प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् |
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृ विश्वम्भरः
तस्य वश्यो हरि र्जायते सत्वरम् ||

Apr 5, 2020

पिबरे राम रसम रसने - स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्र

पिबरे राम रसम 

पिबरे राम रसम   पिबरे राम रसम   रसने !  पिबरे राम रसम   !
पिबरे राम रसम   रसने !  पिबरे राम रसम   
पिबरे राम रसम   रसने !  पिबरे राम रसम   ! 

पिबरे  राम रसम   रसने  !
 
दूरी कृता  पातक  संसारगम 
पूरित  नाना  विद  फलवारगम  !

दुरी कृता पातक  संसारगम 
पूरित  नाना  विद  फलवारगम  !!
पिबरे राम रसम   पिबरे राम रसम   रसने !  पिबरे राम रसम  !
पिबरे राम रसम   रसने ! 
जनन मरण भय शोक विदूरम
सकल शास्त्र निगमागम सारं  !
जनन मरण भय सोक विदूरम
सकल शास्त्र निगमागम सारं  !!
पिबरे राम रसम  पिबरे राम रसम   रसने !  पिबरे राम रसम   !

पिबरे राम रसम   रसने ! 

परिपालित  सरसिजा गर्भणडम 


परम  पवित्री  कृता  पाषण्डं 


परिपालित  सरसिजा गर्भणडम 


परम  पवित्री  कृता  पाषण्डं 
पिबरे राम रसम  रसने   पिबरे राम रसम   !
पिबरे राम रसम  राम  रसम   !!

सुध्धा  परमहंस आश्रम गितं
शुक शौनक कौशिक मुख पीतं !
सुध्धा  परमहंस आश्रम  गितं
शुक शौनक कौशिक मुख पीतं !!
पिबरे राम रसम   रसने   पिबरे राम रसम   !

पिबरे  राम रसम   रसने  पिबरे  राम  रसम  !


राम रसम  राम रसम   राम रसम   राम रसम   राम रसम   !!!!!!


स्वामी सदाशिव  ब्रह्मेन्द्र विरचितं
कुलदीप पाई  - राहुल वेलाल  

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श्री राम नवमी  
नामा रामायण 
आदित्य हृदयं 
राम अष्टकम 
राम आरती 
पिबरे राम रसम

Apr 3, 2020

श्री रामाष्टकम्

श्री रामाष्टकम्


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम

भजे विशेषसुन्दरं समस्तपापखण्डनम् ।
स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव राममद्वयम्   ॥ १ ॥

राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम  

जटाकलापशोभितं समस्तपापनाशकं ।

स्वभक्तभीतिभञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ २ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम

निजस्वरूपबोधकं कृपाकरं भवापहम् ।

समं शिवं निरञ्जनं भजे ह राममद्वयम् ॥ ३ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम

सहप्रपञ्चकल्पितं ह्यनामरूपवास्तवम् ।

निराकृतिं निरामयं भजे ह राममद्वयम् ॥ ४ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम

निष्प्रपञ्चनिर्विकल्पनिर्मलं निरामयम् ।


चिदेकरूपसन्ततं भजे ह राममद्वयम्  ॥ ५ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम


भवाब्धिपोतरूपकं ह्यशेषदेहकल्पितम् ।

गुणाकरं कृपाकरं भजे ह राममद्वयम् ॥ ६ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 

महावाक्यबोधकैर्विराजमानवाक्पदैः ।

परं ब्रह्मसद्व्यापकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ७ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 

शिवप्रदं सुखप्रदं भवच्छिदं भ्रमापहम् ।

विराजमानदेशिकं भजे ह राममद्वयम् ॥ ८ ॥


राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 


राम राम राम राम  राम राम राम राम  

राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 
राम राम राम राम  राम राम राम राम 

राम राम राम राम  राम राम राम राम  
राम राम राम राम  राम राम राम राम 

रामाष्टकं पठति यस्सुखदं सुपुण्यं

व्यासेन भाषितमिदं शृणुते मनुष्यः

विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं

संप्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्  ॥ ९ ॥

इति श्रीव्यासविरचितं रामाष्टकं संपूर्णम्
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