Dec 27, 2018

ब्रह्मज्ञानावलीमाला |


सकृच्छवणमात्रेण  ब्रह्मज्ञानं  यतो  भवेत् | 

ब्रह्मज्ञानावलीमाला  सर्वेषां  मोक्षसिद्धये |१ | 


असङ्गोहमसङ्गोहमसङ्गोहं पुनः पुनः | 

सच्चिदानन्दरूपोहमहमेवाहमव्ययः |२ | 

नित्यशुद्धविमुक्तोहं  निराकारोहमव्ययः | 

भूमानन्दस्वरूपोहमहमेवाहमव्ययः |३ | 

नित्योऽहं निरवद्योऽहं निराकारोहमुच्यते | 

परमानन्दरूपोहमहमेवाहमव्ययः |४ |

शुद्धचैतन्यरूपोहमात्मरामोहमेव  च |
अखण्डानन्दरूपोहमहमेवाहमव्ययः |५ |

प्रत्यक्कैतन्यरूपोहं  शानतोहं  प्रकृतेः  परः |
शाश्वतानन्दरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः |६ |
तत्त्वातीतः  परात्माहं  मध्यातीतः  परः  शिवः  |
मायातीतः  परंज्योतिरहमेवाहमव्ययः |७ |
 

नानारूपव्यतीतोहं  चिदाकारोहमच्युतः  | 
सुखरूपस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः |८ |
मायातत्कार्यदेहादि  मम  नास्त्येव  सर्वदा |
स्वप्रकाशैकरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः |९ |

गुणत्रयव्यतीतोहं  ब्रह्मादीनां  च  साक्ष्यहम |
अनन्तानन्तरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः |१० |

अन्तर्यामिस्वरूपोहं  कूटस्थः  सर्वगोऽस्म्यहम | परमात्मस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः |११ |
 

निष्कलोहं  निष्क्रियोहं  सर्वात्माद्यः  सनातनः  |
अपरोक्षस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः |१२ |
 

द्वन्द्वादिसाक्षिरूपोऽहमचलोहं  सनातनः |
सर्वसाक्षिस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः |१३ |

प्रज्ञानधन  एवाहं  विज्ञानधन  एव  च  |
अकर्ताहमभोक्ताहमहमेवाहमव्ययः |१४ |
 

निराधारस्वरूपोहं  सर्वाधारोऽहमेव च |
आप्तकामस्वरूपोऽहमहमेवाहमव्ययः |१५ |

तापत्रयविनिर्मुक्तो  देहत्रयविलक्षणः |
अवस्थात्रयसाक्ष्यस्मि  चाहमेवाहमव्ययः |१६ |
दृग्दृश्यौ  द्वौ  पदार्थौ  स्तः  परस्परविलक्ष्णौ |
दृग्ब्रह्मा  दृश्यं  मायेति  सर्ववेदान्तडिण्डिमः  |१७ |

अहं  साक्षीति यो  विद्याद्विविच्यैवं  पुनः  पुनः |
स  एव  मुक्तः  सो  विद्वानिति  वेदान्तडिण्डिमः |१८ |

घटकुड्यादिकं  सर्वं  मृक्तिकामात्रमेव  च  |
तद्वद्वह्म  जगत्सर्वमिति  वेदान्तडिण्डिमः |१९ |
 

ब्रह्मा  सत्यं  जगन्मिथ्या  जीवो  ब्रह्मैव  नापरः  |
अनेन  वेद्यं  सच्छास्त्रमिति  वेदान्तडिण्डिमः |२० |
 

अन्तर्ज्योतिर्बहिर्ज्योतिः  प्रत्यग्ज्योतिः  परात्परः  |
ज्योतिर्ज्योतिः  स्वयंज्योतिरात्मज्योतिः  शिवोऽस्म्यहम |२१ |
इति  श्रीशंङ्कराचार्यविरचितं  ब्रह्मज्ञानावलीमाला  सम्पूर्णम  ||
                         

॥ ॐ तत्सत् ॥

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