षट्पदी
आचमनः
गणपति ध्यानं
रचन: आदि शङ्कराचार्य
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ॐ अच्युताया नमः / स्वाहा !
ॐ अनन्ताय नमः / स्वाहा !
ॐ गोविन्दाय नमः / स्वाहा !
गणपति ध्यानं
शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्नाम चतुर्भुजं
प्रसन्नवदनं ध्यायेत सर्वा विघ्नोपशंताये !
षट्पदी
षट्पदी
अविनयमपनय विष्णो दमय मनः शमय विषयमृगतृष्णाम् ।
भूतदयां विस्तारय तारय संसारसागरतः ॥ 1 ॥
भूतदयां विस्तारय तारय संसारसागरतः ॥ 1 ॥
दिव्यधुनीमकरन्दे परिमलपरिभोगसच्चिदानन्दे ।
श्रीपतिपदारविन्दे भवभयखेदच्छिदे वन्दे ॥ 2 ॥
श्रीपतिपदारविन्दे भवभयखेदच्छिदे वन्दे ॥ 2 ॥
सत्यपि भेदापगमे नाथ तवाஉहं न मामकीनस्त्वम् ।
सामुद्रो हि तरङ्गः क्वचन समुद्रो न तारङ्गः ॥ 3 ॥
सामुद्रो हि तरङ्गः क्वचन समुद्रो न तारङ्गः ॥ 3 ॥
उद्धृतनग नगभिदनुज दनुजकुलामित्र मित्रशशिदृष्टे ।
दृष्टे भवति प्रभवति न भवति किं भवतिरस्कारः ॥ 4 ॥
दृष्टे भवति प्रभवति न भवति किं भवतिरस्कारः ॥ 4 ॥
मत्स्यादिभिरवतारैरवतारवताஉवता सदा वसुधाम् ।
परमेश्वर परिपाल्यो भवता भवतापभीतोஉहम् ॥ 5 ॥
परमेश्वर परिपाल्यो भवता भवतापभीतोஉहम् ॥ 5 ॥
दामोदर गुणमन्दिर सुन्दरवदनारविन्द गोविन्द ।
भवजलधिमथनमन्दर परमं दरमपनय त्वं मे ॥ 6 ॥
भवजलधिमथनमन्दर परमं दरमपनय त्वं मे ॥ 6 ॥
नारायण करुणामय शरणं करवाणि तावकौ चरणौ ।
इति षट्पदी मदीये वदनसरोजे सदा वसतु ॥
इति षट्पदी मदीये वदनसरोजे सदा वसतु ॥
रचन: आदि शङ्कराचार्य
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